वॉल्यूम संख्या 40 के क्रम संख्या 250 में कोंग्रेस में शामिल हुए दलितों ने हमें दोखा दिया इस पर बाबा साहब ने छात्रावास के दलित छात्रों को क्या निर्देश दिए जाने पूरा।

समाज के विश्वासपात्र नेता बनें और समाज का सही मार्गदर्शन करें। मुंबई के सिद्धार्थ कॉलेज के छात्रावास के दलित छात्रों द्वारा 4 अक्तूबर , 1947 की शाम पर पूज्य सांसद डॉ . बाबासाहेब अम्बेडकर को अल्पाहार के लिए आमंत्रित किया गया ।

भास्करराव भोसले ने औपचारिक भाषण दिया । उन्होंने संक्षेप में , और प्रभावशाली ढंग से अपनी बात रखी ।

उनके बाद डॉ . बाबासाहेब अम्बेडकर ने छात्रों से कहा हमारे छात्रों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है । हमारी राजनीति की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई । उसके लिए शेड्यूल्ड कास्टस् फेडरेशन के झंडे तले सबको अपना संगठन बढ़ाना होगा । अपना आचरण शुद्ध रखते हुए अपने उद्देश्य को पाने के लिए जागरुक रहना होगा । आज की स्थिति में अगर अपनी मनोवांछा पूरी नहीं हुई तब भी हमें उसे प्राप्त करने के संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा । आपके लिए इस कॉलेज में मैंने कई तरह की सहूलियतें उपलब्ध कराई हैं । उनका लाभ उठाएं ।

आज राजनीति में हमारे दल की भले उपेक्षा की गई हो फिर भी भविष्य में हम अपना उद्देश्य प्राप्त कर लेंगे और अपने दल को विजय दिलाएंगे ।

इंग्लैंड के मजदूर पार्टी का उदाहरण अपनी आंखों के आगे हमेशा रखें । वह बहुत छोटा दल था और उसे कदम – कदम पर हार का सामना करना पड़ा था । लेकिन अपनी लगातार कोशिश के कारण आज वह दल सत्ता में शामिल है ।

काँग्रेस में शामिल हुए दलितों ने हमें धोखा दिया है । इसीलिए , मैं आपको आदेश देता हूं कि इन हालात के बारे में समग्रता से सोच कर वर्तमान स्थितियों के साथ टक्कर लेने के लिए आप अपने समाज के नेता बनें और समाज का उचित मार्गदर्शन करें ।

डॉ . बाबासाहेब के भाषण के बाद आयु . बी . सी . कांबले ने सबके प्रति आभार प्रकट किया और डॉ . बाबासाहेब अम्बेडकर की जयकार की गूंज से कार्यक्रम संपन्न हुआ ।

~ताराचन्द जाटव~

आज फ़िल्म “जय भीम” अमेजॉन प्राइम में रिलीज़ हो गई है। उसका प्रचार-प्रसार इसलिये जरूरी नहीं कि उसकी पृष्टभूमि में दलित, आदिवासी, संविधान, जय भीम जैसे शब्द और विषयवस्तु है बल्कि इसलिए भी जरूरी है कि यह फिल्में कमाई के उद्देश्य से नहीं बनाई जाती है।

आज फ़िल्म “जय भीम” अमेजॉन प्राइम में रिलीज़ हो गई है। उसका प्रचार-प्रसार इसलिये जरूरी नहीं कि उसकी पृष्टभूमि में दलित, आदिवासी, संविधान, जय भीम जैसे शब्द और विषयवस्तु है बल्कि इसलिए भी जरूरी है कि यह फिल्में कमाई के उद्देश्य से नहीं बनाई जाती है, जागरूकता के मध्यनजर बनाई जाती है। जिसमें घाटे का जोख़िम भी उठाना पड़ता है।

फ़िल्म के हीरो सूर्या शिवकुमार ने फ़िल्म के रिलीज़ से पहले ही एक करोड़ की राशी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन को वहां के आदिवासीयों के कल्याण हेतु दी है। फ़िल्म को आगे चलकर कितनी तवज्जो मिलेगी अभी बता नहीं सकते लेकिन इतना तय है कि विषय जब उठता है तब उसके समाधान हेतु हाथ भी उठते हैं और इसी वजह से असली हीरो निकलकर आते हैं।

आर पी विशाल

कितनी विडंबना है कि कैंसर, एड्स, कुपोषण, शराब, तम्बाकू, गुटखा इत्यादि पर असंख्य विज्ञापन बने हैं इस देश में यहां तक कि लिंगभेद, रंगभेद पर कम ही सही मगर बात हुई ही है लेकिन जातिवाद के खिलाफ कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इसपर कोई विज्ञापन बना सकें।

कितनी विडंबना है कि कैंसर, एड्स, कुपोषण, शराब, तम्बाकू, गुटखा इत्यादि पर असंख्य विज्ञापन बने हैं इस देश में यहां तक कि लिंगभेद, रंगभेद पर कम ही सही मगर बात हुई ही है लेकिन जातिवाद के खिलाफ कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि इसपर कोई विज्ञापन बना सकें। हर टीवी चैनल पर जातिवाद के ख़िलाफ़ विज्ञापन होना चाहिए था साथ ही सभ्य समाज में आचरण, विचार, मानवीय भावनाओं हेतु व्यवहार कैसा होना चाहिए उसका प्रचार भी जरूरी था।

हाशिये में पड़े समाज अर्थात बहिष्कृत समाज को जगाने, शिक्षित व जाग्रत करने में दक्षिण सिनेमा का बड़ा योगदान रहा है। हिंदी बाहुल्य क्षेत्र चाहे वह सिनेमा हो, साहित्य हो, या मीडिया हो अधिकांश जनजागृति के मामलों में भ्रमित करने वाले तथ्य मिलते हैं बाक़ी गलत परम्परा, मान्यता को पोषित, संरक्षित करने वाला कंटेंट मिलता है। जबतक हमारी मान्यताओं के विपरीत तर्क व उनके तथ्य हमें ज्ञात नहीं होंगे बदलाव कैसे आयेगा?

वर्तमान समय में साहित्य व सिनेमा में काफ़ी बदलाव आया है। भले ही हाशिये के लोगों का प्रतिनिधित्व बेहद नगण्य हो मगर उनकी बातें लगातार हो रही है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि दलित,आदिवासी,पिछड़ों ने अपने वेब चैनल, पत्रिकाएं, यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया के टूल्स, अन्य कॉमन प्लेटफार्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवायी और लोगों तक ऐतिहासिक, वर्तमान परिदृश्य पर अपने विचार प्रेषित किये हैं।

आर्टिकल 15 से लेकर भीमा कोरेगांव, शरणम गच्छामि, सैराट, 500, दी शुद्र या जय भीम इत्यादि तक एक बदलाव की आहट ही नहीं उस पक्ष की पीड़ा, मौजूदगी और समस्यायों पर मंथन है। हिंदी सिनेमा या हिंदी साहित्य की कहानी में दलित केवल सेवक, ड्राइवर, गरीब, शोषित के रूप में ही दिखाई पड़ता है कभी मुख्य हीरो की भूमिका में नहीं दिखा और न ही दलित कलाकार कोई हीरो जैसे बड़े चेहरे में नहीं दिखाई दिया।

अब समय बदल रहा है क्योंकि आप बात करने लगे हैं। बेझिझक बिना किसी की परवाह किये बगैर अपनी बात बोलने लगे हैं। लोग क्या सोचेंगे, लोग क्या बोलेंगे,अंजाम क्या होगा या कौन क्या धारणाएं बनाएगा इसकी चिंता छोड़कर, संवैधानिक दायरे में,सभ्य व शालीनता के साथ अपना पक्ष हर रोज़ रख रहे हैं और गलत बातों का विरोध भी बड़ी मुखरता से कर रहे हैं। यही ताकत है जो आपका ध्यान रहेगा अन्यथा पीड़ित, शोषित,अपमानित और बहिष्कृत ही परिभाषित होंगे।

~ताराचन्द जाटव~

बड़गांव विधायक जिग्नेश मेवाणी गुजरात के कच्छ जिले की रापर तहसील के वरनु गांव के मंदिर में दलितों के अधिकारों हेतु गर्भ गृह में किया प्रवेश।

यह उन लोगों के मुह पर तमाचा है जो अपनी जाति से अपने आपको श्रेष्ठ समझते हैं उनकी मानसिकता पर कड़ा प्रहार है वैसे मंदिरों में जाने से कोई लाभ तो नही होगा लेकिन जब से देश संविधान अपने स्वरूप में आया है संविधान के तहत भारतीय नागरिकों को देश के हर साधन संसाधन में बराबरी का हिस्सेदारी है किसी को जाति विशेष का होने से उसे उसके अधिकारों से वंचित नही किया जा सकता है

मानसिक विकृति में अहम योगदान सत्ता सरकार का है आजकी राजनीति इतनी दूषित हो चुकी है जिसकी कल्पना करना बहुत ही मुश्किल है, भारत में लोग बड़ी तेजी से मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं । एक रिपोर्ट के मुताबिक सैंतालीस फीसद लोग मानसिक रोगों की चपेट में हैं ।

मानसिक विकृति में अहम योगदान सत्ता सरकार का है आजकी राजनीति इतनी दूषित हो चुकी है जिसकी कल्पना करना बहुत ही मुश्किल है, भारत में लोग बड़ी तेजी से मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं । एक रिपोर्ट के मुताबिक सैंतालीस फीसद लोग मानसिक रोगों की चपेट में हैं ।

भारतीय चिकित्सा परिषद ने 2017 में पहली बार इस पर व्यापक अध्ययन किया , तो पता चला कि 4.57 करोड़ लोग मानसिक विकार , अवसाद और 4.49 करोड़ लोग बेचैनी से पीड़ित है ।

मानसिक रोग से छुटकारा पाने के लिए परिवार का साथ होना बहुत जरूरी है । परिवार का सहयोग होने से व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता और नए कार्य करने में उत्सुकता होती है , जिससे व्यक्ति तनावमुक्त रहता है ।

मानसिक रोगों के कई कारण हैं । एकल परिवार , एक दूसरे से अपने मन की बात साझा न करना , घरेलू हिंसा , अपने आप को अलग रखना ! सामाजिक बिंदु और विचारों से अपने आपको जीवन और मृत्यु के नकारात्मक बिंदु के बीच अपने आप को अलग महसूस करना , यह सब नकारात्मक विचार आदि है ।

इससे निजात पाने के लिए व्यक्ति को परिवार , रिश्तेदार और समाज से जुड़ा रहना चाहिए । इसके साथ राजनीति माहौल शांत व खुशनुमा होना चाहिए आज के माहौल राजनीतिक पार्टी अपने हित साधने के लिए लोगों के दिमाग में जहर घोलने का कार्य कर रही है जब व्यक्ति का मस्तिष्क विचारों से स्वास्थ्य नही होगा तो वह समाज व खुद को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधि में लिप्त होकर गलत कार्यों को अंजाम देने का कार्य करता है ,


इन समश्याओ के समाधान हेतु सरकार को स्वास्थ, शिक्षा, जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ रोज़गार बढाने के कार्य करने चाहिए जिससे एक स्वास्थ समाज का निर्माण हो सके लेकिन ये सब अगर सरकार ने कर दिया तो उनकी राजनीति भी तो खतरे में पड़ जाएगी और ये सब सरकार करने से रही।


ताराचन्द जाटव

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