छुआछुती विरोधी कानून, 1955

छुआछुती विरोधी कानून, 1955         

भारत के संविधान में हर नागरिक को एक समान माना गया है | किसी भी व्यक्ति को किसी ख़ास जाति में पैदा होने के कारण उसे अछूत मानकर जो दुरी का व्यवहार किया जाता है | वो छुआछूत कहलाता है व मानवता पर कलंक है | इसके लिए छुआछूत रोकने के लिए छुआछूत विरोधी क़ानून बनाया गया है| इससे नागरिकों के हितों की रक्षा होती है | छुआछूत के आधार पर किसी भी तरह की रोकटोक लगाने वाले को सजा दी जाती है | समाज में सभी को बराबरी से रहने का हक है | सार्वजनिक चीजें जैसे कुँए,तालाब, आदि का इस्तेमाल पर हर जाति के लोगों का हक हैऔर रोकने पर अपराध माना गया है व एक साल की सजा व 500 रुपये का जुर्माना हो सकता है | बार-बार अपराध करने सजा हर बार बढ़ सकती है|

राजस्थान टीनेंसी एक्ट, 1955

राजस्थान टीनेंसी एक्ट, 1955

धारा – 42 के अनुसार , खातेदार काश्तकार द्वारा अपने पिरे भूमि क्षेत्र में या उसके किसी भाग में अपने हित की बिक्री , दान (गिफ्ट ) या वसीयत शुन्य होगी यदि, उक्त बिक्री दान वसीयत अनुसूचित जाति का नहीं हो अथवा अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा ऐसे व्यक्ति के पक्ष में में की गई हो जो अनुसूचित जनजाति का नहीं हो |

धारा – 183 कतिपय अतिकमियों की बेदखली

(1) इस अधिनियम के किसी उपबंध में कोई विपरीत बात अंतर्विष्ट होते हुए भी कोई अतिकृमि जिसने भूमि को कब्जे में बिना वैध अधिकार के ले लिया है या रखा है , उस व्यक्ति या उन व्यक्तियों के वाद पर जो उसे आसामी के रूप में  बेदखली करने के हकदार हैं , उपधारा –(2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए बेदखली का भागी होगा और साथ ही प्रत्येक कृषि वर्ष जिसमें उसने पुरे वर्ष या कुच्छ भाग में इस प्रकार कब्जा रखा हो , के लिए शास्ति के तौर पर ऐसी रकम देने का भी भागी होगा जो वार्षिक लगान के पंद्रह गुने तक हो सकती है | (2) ऐसी भूमि जो सीधे राज्य सरकार से लेकर धारण की हुई हो या जिस पर राज्य सरकार तहसीलदार की मार्फ़त अतिक्रमी को आसामी के रूप में स्वीकार करने का हकदार है , तहसीलदार राजस्थान लैण्ड रेवेन्यु एक्ट , 1956 की धारा 91 के उपबंधों के अनुसरण में कार्यवाही करने को अग्रसर होगा |

दलितों के अधिकार

दलितों के अधिकार

भारत का संविधान सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक न्याय और व्यक्ति जी गरिमा और राष्ट्र की ऐकत और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढसंकल्प होकर अंगीकृत, अधिनियम और आत्मार्पित किया है | संविधान का

अनुच्छेद – 14 में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण प्रदान किया गया है |

अनुच्छेद – 15(4) के अनुसार राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्ही वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने का अधिकार होगा |

अनुच्छेद -16(4)  के अनुसार राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में , जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है नियुक्तियों या पदों के लिए आरक्षण के लिए उपबंध का अधिकार है |

अनुच्छेद -17 के अनुसार ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) का अंत किया गया है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया गया है अस्पृश्यता से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा |

अनुच्छेद – 43 में कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी के प्रावधान है |

अनुच्छेद – 45 में छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखरेख और शिक्षा का उपबन्ध है

अनुच्छेद – 46 में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि के प्र्रव्धान हैं |

अनुच्छेद – 243 (डी) में प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित करने का प्रावधान है

अनुच्छेद – 243 (टी) नगरपालिकाओं में आरक्षण के प्रावधान हैं |

अनुच्छेद – 330 लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण

अनुच्छेद – 332 राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण

अनुच्छेद – 335 सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का, प्रशासन की दक्षता बनाये रखने की संगती के अनुसार ध्यान रखा जायेगा |

अनुच्छेद – 338 के अनुसार राष्ट्रीय अनुसूचित जाति  आयोग का गठन किया जायेगा |

अनुच्छेद – 338 (ए)  के अनुसार अनुसूचित जनजाति जाति आयोग का गठन किया जायेगा |

अनुच्छेद – 339 अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के बारे में संघ का नियंत्रण का प्रावधान है |

अनुच्छेद – 340 में पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति की जासकती है |

    संविधान की इसी पवित्र परिकल्पना के लेकर दलितों के कल्याण के लिए और समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अनेक अधिनियम संसद और विधान मंडलों द्वारा बनाये गए हैं जिनमे कुछ अधिनियमों के मुख्य-मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं

1. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989

 धारा – 3 अत्याचारों के अपराधों के लिए दण्ड—कोई भी व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है,

(1) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को घृणाजनक पदार्थ पीने या खाने के लिए मजबूर करेगा ,

(2) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी भी सदस्य के परिसर या पड़ोस में मल-मूत्र , कूड़ा , पशु-शव या कोई घृणाजनक पदार्थ इकठ्ठा करके उसे क्षति पहुँचाना, अपमानित करने या क्षुब्द करने के आशय से कार्य करेगा,

(3) शरीर से बलपूर्वक कपडे उतारेगा या उसे नंगा या चेहरे या शरीर को पोत कर घुमायेगा या इसी प्रकार का कोई अन्य ऐसा कार्य करेगा जो मानव के सम्मान के विरुद्ध है |

(4) किसी भूमि या सदोष अधिभोग में लेगा या उस पर खेती करेगा या उसे आबंटित भूमि को अंतरित कर लेगा ,

(5) उसकी भूमि या परिसर से सदोष बेकब्जा करेगा या किसी भूमि परिसर या जल पर उसके अधिकारों के उपभोग में हस्तक्षेप करेगा,

(6) बेगार बलात्श्रम या बंधुआ मजदूरी के लिए विवश करेगा या फुसलायेगा,

(7) मतदान न करने के लिए या किसी विशिष्ट अभ्यर्थी के लिए मतदान करने के लिए या मतदान करने के लिए मजबूर या अभित्रस्त करेगा,

(8) मिथ्या, द्वेषपूर्ण या तंग करने वाला वाद या दाण्डिकया अन्य विधिक कार्यवाही संस्थित करेगा ,

(9) किसी लोक सेवक को कोई मिथ्या , तुच्छ जानकारी देगा जिस से क्षति पहुंचाने या क्षुब्द करने के लिए ऐसे लोक सेवक से उसकी विधिपूर्वक शक्ति का प्रयोग कराएगा,

(10) जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का अपमान करने के आशय से साशय उसको अपमानित या अभित्र्स्त करेगा ,

(11) किसी महिला का अनादर करने या उसकी लज्जा भंग करने के आशय से हमला या बल प्रयोग करेगा ,

(12) किसी महिला की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में होने पर उस स्थिति का प्रयोग उसका शोषण करने के लिए जिसके लिए वह अन्यथा नहीं होगी करेगा ,

(13) किसी स्त्रोत , जलाशय या उद्गम के  जल जल को जो आम तौर पर अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लाई जाती हैं, दूषित या गंदा करेगा जिससे कम उपयुक्त हो जाये ,

(14) किसी सार्वजनिक अभिगम के स्थान के मार्ग के किसी रुढीजन्य अधिकार से वंचित करेगा या ऐसे सदस्य को बाधा पहुंचाएगा ,

(15) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान , गाँव या निवास स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करेगा या कराएगा|

उपरोक्त सभी अपराधों के लिए कारावास से जिसकी अवधि छः महिना से कम नहीं होगी , किन्तु जो पांच वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने से दण्डित होगा |

धारा- 3(2)(v) के अनुसार अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति केसदस्य के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता के अधीन दस वर्ष या उसके उसके अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय कोई अपराध किसी व्यक्ति या संपत्ति के विरुद्ध करेगा , तो वह आजीवन कारावास से और जुर्माने से दंडनीय होगा |

धारा- 3 (VII) के अनुसार लोक सेवक होते हुए इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह कारावास से , जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी , किन्तु जो उस अपराध के लिए उपबंधित दण्ड तक हो सकेगी , दंडनीय होगा |

धारा – 5 में पश्चातवर्ती दोषसिद्धि केलिए वर्धित दण्ड के प्रावधान हैं |

धारा – 7 के अनुसार जहां कोई व्यक्ति इस अध्याय के अधीन दंडनीय किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, वहां विशेष न्यायालय कोई दण्ड देने के अतिरिक्त लिखित रूप में आदेश द्वारा यह घोषित कर सकेगा की उस व्यक्ति की कोई संपत्ति स्थावर या जंगम या दोनों , जिनका उस अप्राद को करने में प्रयोग किया गया है , सरकार को समर्पित हो जाएगी

धारा – 8  में अपराधों के बारें उपधारणा है एक्ट के अध्याय 3 में निष्कासन के प्रावधान हैं| अध्याय 4 में विशेष न्यायालय गठित किये जा सकते हैं |

धारा – 16 के अनुसार राज्य सरकार की सामूहिक जुर्माना अधिपोरित करने की शक्ति है

धारा – 18 में अग्रिम जमानत के प्रावधान समाप्त किये हैं |

धारा – 19 में अपराधी को परिवीक्षा का लाभ नहीं दिया जाएगा |

धारा – 21 में राज्य सरकार का कर्तव्य होगा की अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करें

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